श्राद्ध पूजा विधि 2025: पितृ पक्ष में पितरों की शांति के लिए सरल नियम

पितृ पक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक महत्वपूर्ण और सरल उपाय है। यह 16-दिवसीय अवधि भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलती है। 2025 में, पितृ पक्ष 7 सितंबर से 22 सितंबर तक मनाया जाएगा। इस दौरान, श्राद्ध पूजा, तर्पण, और पिंडदान किए जाते हैं ताकि पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त हो।

पितृ पक्ष क्या है? इसका महत्व बताइये

पितृ पक्ष हिंदू धर्म में एक पवित्र अवधि है, जिसमें पूर्वजों (पितरों) को श्रद्धांजलि दी जाती है। मान्यता है कि इस समय पितर मृत्युलोक में अपने परिवार से मिलने आते हैं। श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। यह कर्म पितृ दोष को भी दूर करता है, जो कुंडली में पूर्वजों के असंतोष के कारण उत्पन्न होता है।

पितृ दोष कब और क्यो होता है?

पितृ दोष तब होता है जब पूर्वजों की आत्मा असंतुष्ट होती है या उनका सही से अंतिम संस्कार नहीं हुआ हो। इसके लक्षणों में गर्भधारण में कठिनाई, वैवाहिक समस्याएं, और बार-बार असफलता शामिल हैं। श्राद्ध पूजा और तर्पण इस दोष को कम करने में सहायक हैं। गया में श्राद्ध करने से “अक्षय तृप्ति” प्राप्त होती है, जिससे पितरों को स्थायी शांति मिलती है।

पितृ पक्ष 2025 की तिथियां

पितृ पक्ष 2025 की तिथियां निम्नलिखित हैं, जो पंचांग के अनुसार हैं:

7 सितंबर 2025, रविवार: पूर्णिमा श्राद्ध

8 सितंबर 2025, सोमवार: प्रतिपदा श्राद्ध

9 सितंबर 2025, मंगलवार: द्वितीया श्राद्ध

10 सितंबर 2025, बुधवार: तृतीया और चतुर्थी श्राद्ध

11 सितंबर 2025, गुरुवार: पंचमी श्राद्ध

12 सितंबर 2025, शुक्रवार: षष्ठी श्राद्ध

13 सितंबर 2025, शनिवार: सप्तमी श्राद्ध

14 सितंबर 2025, रविवार: अष्टमी श्राद्ध

15 सितंबर 2025, सोमवार: नवमी श्राद्ध (सौभाग्यवती श्राद्ध)

16 सितंबर 2025, मंगलवार: दशमी श्राद्ध

17 सितंबर 2025, बुधवार: एकादशी श्राद्ध

18 सितंबर 2025, गुरुवार: द्वादशी श्राद्ध

19 सितंबर 2025, शुक्रवार: त्रयोदशी श्राद्ध

20 सितंबर 2025, शनिवार: चतुर्दशी श्राद्ध

21 सितंबर 2025, रविवार: सर्वपितृ अमावस्या (महalaya अमावस्या)

22 सितंबर 2025, सोमवार: मघा नक्षत्र का श्राद्ध

श्राद्ध पूजा का महत्व क्या है?

श्राद्ध संस्कृत शब्द श्रद्धा से लिया गया है, जिसका अर्थ है विश्वास और भक्ति। यह पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करने का एक तरीका है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा यमपुरी की यात्रा करती है, और श्राद्ध कर्म से उन्हें भोजन और जल मिलता है, जो उनकी आत्मा को तृप्त करता है।

श्राद्ध के लाभ कौन-कौन से है?

पितरों को मोक्ष: श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।

पितृ दोष निवारण: कुंडली में पितृ दोष के कारण होने वाली समस्याएं, जैसे गर्भधारण में कठिनाई, वैवाहिक समस्याएं, और आर्थिक तंगी, दूर होती हैं।

सुख-समृद्धि: पितरों का आशीर्वाद परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि लाता है।

कर्मिक ऋण से मुक्ति: पितृ ऋण (पितरों के प्रति ऋण) का भुगतान होता है, जो जीवन की प्रगति के लिए आवश्यक है।

श्राद्ध पूजा की विधि क्या है?

श्राद्ध पूजा की विधि को विधि-विधान के साथ करना महत्वपूर्ण है। नीचे सरल और प्रामाणिक श्राद्ध पूजा विधि दी गई है, जिसे घर पर किया जा सकता है:

सामग्री:

काले तिल, जौ, कुशा घास, और सफेद आटा, चावल, गाय का दूध, घी, शहद, और शक्कर (पिंडदान के लिए) गंगाजल, पवित्र जल, और पंचामृत, पितरों के लिए भोजन (खीर, पूड़ी, सब्जी, और दाल), धूप, दीप, कपूर, और अगरबत्ती, लाल और काले कपड़े (ब्राह्मणों के लिए दान), दक्षिणा (नकद धन), पितरों की तस्वीर या प्रतीक।

श्राद्ध पूजा की विधि

संकल्प:

सुबह के समय (कुतुब मुहूर्त या अपराह्न काल में) पूजा शुरू करें।

हाथ में गंगाजल, तिल, और अक्षत लेकर संकल्प करें: “मैं अपने पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए यह श्राद्ध कर्म कर रहा/रही हूं।”

आसन शुद्धि और शरीर शुद्धि:

पूजा स्थल पर बैठें और गंगाजल छिड़ककर आसन को शुद्ध करें।

“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः।” मंत्र का जाप करें।

पितृ आवाहन:

पितरों को आमंत्रित करें: “ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृ प्रचोदयात्।”

अपने पिता, दादा, और परदादा के नामों का स्मरण करें।

तर्पण:

काले तिल, जौ, कुशा घास, और जल को मिलाकर दक्षिण दिशा में तर्पण करें।

मंत्र: “ॐ पितृभ्यः स्वधायै नमः” (3 बार प्रत्येक पितर के लिए)।

यदि मृत्यु तिथि अज्ञात हो, तो सामान्य तर्पण करें: “ॐ सर्वं पितृभ्यः स्वधायै नमः।”

पिंडदान:

चावल, दूध, घी, शहद, और शक्कर से पिंड बनाएं।

तीन पिंड बनाएं, जो पिता, दादा, और परदादा का प्रतीक हों।

पिंडों को कुशा घास पर रखें और जल अर्पित करें।

मंत्र: “ॐ पितृभ्यः स्वधायै नमः।”

ब्राह्मण भोजन:

ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भोजन में खीर, पूड़ी, और दाल शामिल करें।

भोजन के बाद दक्षिणा, वस्त्र, और तिल दान करें।

कौओं को भोजन:

पिंडदान का एक हिस्सा कौओं को अर्पित करें, क्योंकि वे पितरों के दूत माने जाते हैं।

विसर्जन:

पिंडों को नदी, तालाब, या गाय को अर्पित करें।

प्रार्थना करें: “हे पितरों, कृपया इस श्राद्ध को स्वीकार करें और हमें आशीर्वाद दें।”

आरती और प्रार्थना:

पितरों की तस्वीर या प्रतीक के सामने दीप जलाएं और आरती करें।

श्री गुरुदेव दत्त मंत्र: “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः गुरुदेव दत्त” का 108 बार जाप करें।

श्राद्ध पूजा के लिए शुभ मुहूर्त क्या है?

श्राद्ध पूजा के लिए सही मुहूर्त का चयन महत्वपूर्ण है। 2025 में, निम्नलिखित मुहूर्तों को प्राथमिकता दें:

कुतुब मुहूर्त: सुबह 11:30 बजे से 12:30 बजे तक।

रोहिण मुहूर्त: दोपहर 1:00 बजे से 2:30 बजे तक।

अपराह्न काल: दोपहर 1:30 बजे से 3:30 बजे तक।

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